बैठा नाक गुरूर !!
नई सदी ने खो दिए, जीवन के विन्यास !
सांस-सांस में त्रास है, घायल है विश्वास !!
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रिश्तों की उपमा गई, गया मनों अनुप्रास !
ईर्षित सौरभ हो गए, जीवन के उल्लास !!
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कहाँ हास-परिहास अब,और बातें जरूर !
मिलने ना दे स्वयं से, बैठा नाक गुरूर !!
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बोये पूरा गाँव जब, नागफनी के खेत !
कैसे सौरभ ना चुभे, किसे पाँव में रेत !!
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दीये से बाती रुठी, बन बैठी है सौत !
देख रहा हूँ आजकल,आशाओं की मौत !!
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कहाँ सत्य का पक्ष अब, है कैसा प्रतिपक्ष !
हाँक रहा हो स्वार्थ जब, बनकर सौरभ अक्ष !!
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सपने सारे है पड़े, मोड़े अपने पेट !
खेल रहा है वक्त भी, ये कैसा आखेट !!
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रख दे रिश्ते ताक पर, वो कैसे बदलाव !
षडयंत्रकारी जीत से, सही हार ठहराव !!
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रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, दिल्ली यूनिवर्सिटी,
कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,
333, परी वाटिका, कौशल्या भवन,