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गुरु नानक देव ने योग सिखाया, बिखरना और भटकना नहीं

सहारनपुर। योग गुरु पद्मश्री भारत भूषण ने कहा कि हम कृतज्ञ हैं गुरु नानकदेव की शिक्षा व गुरुओं द्वारा किए गए अमर बलिदान के प्रति, क्योंकि उन्होंने विषमता के उस दौर में भी निर्भय रह कर कर्मधर्म से विचलित न होने और मिलकर उपभोग की प्रेरणा दी। उन्होंने हमें जोड़ यानी योग सिखाया, बिखराव और भटकाव नहीं। उनकी शिक्षा आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं।


मोक्षायतन योग संस्थान में गुरुनानक जयंती की पूर्व संध्या पर योग से जुड़े विविध धर्मावलंबी साधकों से संवाद करते हुए योग गुरू पदमश्री भारत भूषण ने कहा कि भारत में तपस्वी गुरु सदैव ज्ञान का स्रोत रहे हैं और यहां अनेक गुरु परंपराएं चलती रही हैं। इसी गौरवशाली परंपरा में हमारे पथ प्रदर्शक गुरु नानक देव जी का प्रकाशोत्सव पूरे हिन्दू समाज का गौरव है। इसी गुरु गद्दी परंपरा में दसवें गुरु गोविंद सिंह महाराज ने खालसा पंथ की स्थापना की।


गुरु नानक देव सभी शिष्यों के गुरु हैं, उन्हें मात्र खालसा पंथ के अनुयाई शिष्यों का गुरु मानना उस महान विभूति का अवमूल्यन है। गुरुनानक देव के समय में तो खालसा पंथ था भी नहीं। हमारा खालसा पंथ तो उनके बाद की दसवीं पातशाही में बना। उस समय देश, धर्म व मानवता की रक्षा के लिए खालसा पंथ की स्थापना युग की सबसे बड़ी आवश्यकता थी जिसके लिए गुरु गोविंद सिंह महाराज व उनके पूरे परिवार के अमर बलिदान से प्रेरित हो कर देश धर्म व स्वाभिमान रक्षक खालसा पंथ को मजबूत बनाने के लिए हर हिन्दू परिवार से पहले पुत्र को सिक्ख बनाने की परंपरा हमारे अभी तक चलती रही। 


योग गुरु ने बताया कि स्व धर्मम निधनं श्रेय: का अनुसरण करते हुए गुरुजी अपने धर्म से विचलित नहीं हुए और उन्होंने हमें ‘कीरत कर वंड चख’ और ‘भय काहू को देय नहीं, भय नहीं मानत आन’ कह नानक सुन रे मना सूरा सोई पिछान’ यानि पुरुषार्थ करो और मिल बांट कर उपभोग करो व न डरो न ही किसी को डराओ का संदेश दिया। गुरु नानक देव की आध्यात्मिक निर्भयता का ही ये प्रभाव था कि कटुता को भुला कर उनके प्रमुख शिष्यों बाला और मर्दाना में एक मुस्लिम भी रहे। 


चतुर राजनीतिज्ञों ने धर्म का उपयोग अपना हित साधने में करने व बांटो और राज करो की रीत हमेशा अपनाई है। उनकी इसी रीत ने हिन्दू चिंतन के रोटी बेटी के रिश्ते वाले गौरवशाली अंग पवित्र खालसा पंथ को उनके मूल हिन्दुत्व से अलग करने का कुचक्र चलाया। विवेकी समाज को इस कुचक्र से चैकस रहकर अपनी एकात्मकता व त्याग की विरासत को संभालने की जरूरत है। योगी भारत भूषण ने कहा कि हमारे जीवन को दिशा देने वाले इन महान गुरुओं के चित्रों को अपने घरों में स्थान देते हुए उनके चरित्रों को अपने जीवन में अपनायें।


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