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आपातकाल के दिन को भाजपा ने मनाया काला दिवस



सहारनपुर। तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा 25 जून 1975 को देश में आपातकाल लगा कर लोकतंत्र की हत्या करने के विरोध में आज भारतीय जनता पार्टी ने काला दिवस मनाया साथ ही उस समय के लोकतंत्र सेनानियों को उनके घर जाकर सम्मानित किया और आपातकाल के काले अध्याय पर वेबिनार का आयोजन किया गया।

भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष व राज्य सभा सांसद कांता कर्दम ने वेबिनार को सम्बोधित करते हुए कहा कि कांग्रेस ने आपातकाल के रूप में देश के लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे बदनुमा दाग दिया जिसे कभी भुलाया नही जा सकता। इस दौरान मीडिया पर भी तरह तरह के प्रतिबंध लगा दिए गए थे। देश भर में खास कर उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान में विपक्षी नेताओं को न केवल गिरफ्तार कर जेलों में भेड़-बकरियों की तरह ठूंस दिया गया बल्कि कांग्रेस सरकार का विरोध करने वाले विपक्षी कार्यकर्ताओं के परिवारों को बुरी तरह से प्रताड़ित किया गया।

मुख्य वक्ता तेज कुमार क्वात्रा ने वेबिनार को सम्बोधित करते हुए कहा कि असंवैधानिक तरीके से सत्ता पर काबिज कांग्रेस सरकार का आतंक इस कदर था कि जेलों में बंद ष्लोकतंत्र सेनानियोंष् को यह डर सताने लगा था कि क्या कभी वे इन काली रातों का सीना चीरकर, न्याय का सूरज देखने के लिए जेल से बाहर आ पाएंगे ? 

उन्होंने कहा कि जब 12 जून 1975 को दिए अपने फैसले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी पर छह वर्षों तक कोई भी पद संभालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। लेकिन तानाशाही प्रवृति की इंदिरा गांधी ने इस फैसले को मानने से इनकार करते हुए न्यायालय का उपहास किया। आपातकाल लागू होते ही आंतरिक सुरक्षा कानून (मीसा) के तहत राजनीतिक विरोधियों की गिरफ्तारी की गई, इनमें जयप्रकाश नारायण, जॉर्ज फर्नांडिस और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे बड़े नेता शामिल थे। 

आपातकाल लागू करने के पीछे उच्च न्यायालय का निर्णय तो था ही लेकिन केंद्र और अनेक कांग्रेसी राज्य सरकारों की तानाशाही के विरुद्ध देशभर में 1972 से विद्यार्थियों ने आंदोलन छेड़ रखा था। इन छात्र आंदोलनों की अगुवाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और समाजवादी विचारधारा के कुछ छात्र संगठनों के हाथों में थी। गुजरात की तत्कालीन कांग्रेसी सरकार के विरुद्ध शुरू हुए विद्यार्थी आंदोलन ने 1973 तक बिहार में प्रचंड रूप धारण कर लिया। जिसे बिहार छात्र आंदोलन के नाम से जाना जाता है। जिसका नेतृत्व संघ के तत्कालीन प्रचारक के.एन. गोविंदाचार्य और  विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय नेता रामबहादुर राय कर रहे थे। 

तेज क्वात्रा ने कहा कि सरकार विरोधी आंदोलन को संरक्षण देने के नाम पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्रतिबन्धित कर दिया गया। सरकार का मानना था कि संघ विपक्षी नेताओं का करीबी है तथा इसका बड़ा संगठनात्मक आधार सरकार के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन करने की क्षमता रखता है। पुलिस संघ पर टूट पड़ी और देशभर में उसके हजारों स्वयंसेवकों को कैद कर दिया गया। संघ ने प्रतिबंध को चुनौती दी और मौलिक अधिकारों के हनन के विरुद्ध सत्याग्रह में भाग लिया।

भाजपा महानगर अध्यक्ष राकेश जैन ने कहा कि लोकतंत्र की हत्यारी कांग्रेस ने केवल 1975 में ही नहीं बल्कि अनेकों बार अपने निजी हितों के लिए राज्य सरकारों को बरखास्त कर, राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगा कर लोकतंत्र को कांग्रेस का बंधक बनाया। सभ्यता की राजनीति का एक नियम यह भी है कि हम अपने इतिहास के उन काले दाग-धब्बों को इसलिए याद रखें ताकि आने वाली पीढ़ियां सबक ले सकें। 

अनेक लोकतंत्र सेनानियों को उनके निवास पर जाकर भाजपा नेताओं ने सम्मानित किया। लोकतंत्र सेनानी पदम प्रकाश गोयल ने इस दौरान अपने निवास पर भाजपा नेताओं को बताया कि उस समय कांग्रेसी सरकार के दबाव में पुलिस में अत्याचार की सभी सीमाएं पार कर दी और विपक्षी नेताओं के नाखून तक उखाड़ने का काम किया गया।

इस दौरान प्रमुख रूप से महापौर संजीव वालिया, पूर्व सांसद राघवलखन पाल शर्मा, पूर्व विधायक राजीव गुम्बर, लाजकृष्ण गांधी, दिनेश सेठी, महामंत्री शीतल विश्नोई, विपिन कुमार, कोषाध्यक्ष नरेश धनगर, मीडिया प्रभारी गौरव गर्ग, गोकर्ण दत्त शर्मा, उमा नेगी, बबिता सैनी, प्रदीप शर्मा, आदित्य भारद्वाज, रानी वर्मा, संजय अरोड़ा, साध्वी सविता सहित बड़ी संख्या में कार्यकर्ता व प्रबुद्धजन उपस्थित रहे।

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